Concept, Nature, Objectives and Role of Plant Breeding
· पादप जनन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जबकि पादप प्रजनन एक कृत्रिम प्रक्रिया है।
(Plant reproduction is a natural process while plant breeding is an artificial process.)
· पादप प्रजनन ( Plant Breeding):- यह एक कला तथा विज्ञान है जिसके द्वारा पौधों को अधिक आर्थिक महत्व का बनाने के लिए उनकी आनुवंशिकता में सुधार किया जाता है।
(This is an art and science by which genetic improvements are made in plants to make them economically more beneficial.)
· आनुवंशिक सुधार (Genetic Improvements):-
i. ओज में वृद्धि (Vigorous in Growth)
ii. नहीं गिरने वाली (Lodging Resistant)
iii. कीट प्रतिरोधी (Insect Resistant)
iv. रोग प्रतिरोधी (Disease Resistant)
v. शीत प्रतिरोधी (Cold Resistant)
vi. सूखा प्रतिरोधी (Drought Resistant)
पादप प्रजनन की प्रकृति (Nature of Plant Breeding):-
· प्रारम्भ में पादप प्रजनन का स्वरूप कलात्मक था।
(Initially the nature of plant breeding was artistic.)
· जैसे जैसे पादप प्रजनकों का ज्ञान बढ़ता गया, वैसे वैसे पादप प्रजनन में विज्ञान का प्रयोग अधिक होने लगा तथा कला का प्रयोग कम होता गया।
(As with time the knowledge of plant breeders grew up, the use of science get increased and the use of art get decreased in plant breeding.)
· इस प्रकार पादप प्रजनन की प्रकृति कलात्मक व वैज्ञानिक दोनों है।
(Thus at present the nature of plant breeding is artistic as well as scientific.)
पादप प्रजनन के उद्देश्य (Objectives of Plant Breeding):- पादप प्रजनन का मुख्य उद्देश्य पौधों में स्थायी आनुवंशिक परिवर्तन करना है। जिससे उन्हें अधिक आर्थिक महत्व का बनाया जा सके।
(The main objective of plant breeding is to make stable genetic changes in plants to make them economically more beneficial.)
· अधिक उपज (More Yield):- अधिक आमदनी। (More income)
· गुणवत्ता में सुधार (More Quality):- अधिक आमदनी। (More income)
· प्रतिरोधी क़िस्मों का निर्माण (Resistant Varieties):-
i. कीट रोधिता (Insect Resistance)
ii. रोग रोधिता (Disease Resistant)
iii. शीत रोधिता (Cold Resistance)
iv. सूखा रोधिता (Drought Resistance)
· अधिक दक्षता वाली क़िस्मों का विकास (More Efficient Varieties):- जिससे पौधे खाद, उर्वरकों व सिंचाई का अधिक उपयोग कर सकें।
(So that plants can utilize more manure, fertilizers and irrigation.)
· शीघ्र पकने वाली क़िस्मों का विकास (Early Maturation):- रोगों व कीटों से पौधों का बचाव हो जाता है।
(Plants get protected prom late season insects and diseases.)
· एक साथ पकने वाली क़िस्मों का विकास (Synchronous Growth):- विशरण की समस्या खत्म हो जाती है जिससे उपज बढ़ जाती है।
(The problem of shattering get overcomed so that crop yield get increased.)
पादप प्रजनन का योगदान (Role of Plant Breeding):-
1. भारतीय गन्ने का नोबिलाईजेशन (Nobilization of Indian Sugarcane):- गन्ना प्रजनन केंद्र, कोयम्बटूर पर भारतीय गन्ने Saccharum barberi का संकरण ऊष्ण कटिबंधीय गन्ने Saccharum officinarum से कराकर भारतीय गन्ने में सुधार किया गया। भारतीय गन्ना बहुत अधिक कठोर, बहुत कम उपज व बहुत कम रस वाला होता है जबकि उष्ण कटिबंधीय गन्ना बहुत अधिक कोमल, बहुत अधिक उपज, बहुत अधिक रस व बहुत कम रेशे वाला होता है जिसका तना मोटा व छिलका मुलायम होता है। परन्तु उष्ण कटिबंधीय गन्ना उत्तर भारतीय जलवायु में कम उपज देता है। इसलिए उष्ण कटिबंधीय गन्ने के उत्तम लक्षणों भारतीय गन्ने में स्थानांतरित करने के लिए इन दोनों के मध्य संकरण कराया गया। इसी प्रक्रिया को भारतीय गन्ने का नोबिलाइजेशन कहते हैं।
[Indian sugarcane is genetically improved by crossing Saccharum barberi (Indian sugarcane) with Saccharum officinarum (tropical sugarcane) at Sugarcane Breeding Center, Coimbatore. Indian sugarcane have very hard stem, less yield and less juice content while tropical sugarcane have very soft stem, more yield, more juice content, very less fiber content, thick stem and soft peel. But tropical sugarcane has very less yield in Indian climate. Hence superior traits of tropical sugarcane are transferred into Indian sugarcane by hybridization. This process is called as nobilization of sugarcane.]
2. अर्धबौनी क़िस्मों का विकास (Development of semi-dwarf varieties):-
i. धान में (In Rice):- Dee – geo – woo – gen, Taching Native 1, IR 8
इन तीनों क़िस्मों में निम्न गुण पाये जाते हैं:-
(Following superior traits are found in above 3 varieties:-)
· नहीं गिरने वाली (Lodging Resistant)
· अधिक उपज देने वाली (High Yielding)
· उर्वरक प्रतिक्रियात्मक (Fertilizer Responsive)
· प्रकाश असंवेदी (Photo insensitive)
ii. गेहूँ में (In Wheat):- कल्याण सोना (Kalyan Sona), सोनालिका (Sonalika)।
इन दोनों किस्मों में निम्न गुण पाये जाते हैं:-
(Following superior traits are found in above 2 varieties:-)
· नहीं गिरने वाली (Lodging Resistant)
· अधिक उपज देने वाली (High Yielding)
· उर्वरक प्रतिक्रियात्मक (Fertilizer Responsive)
· कंड प्रतिरोधी (Rust Resistant)
· प्रकाश असंवेदी (Photo insensitive)
3. कपास में संकर किस्मों का विकास (Development of hybrid varieties in Cotton):-
C. T. पटेल के द्वारा गुजरात कृषि विश्वविध्यालय (GAU) के सूरत केन्द्र पर Gossypium hirsutum की दो किस्मों के मध्य संकरण कराकर H4 किस्म विकसित की गई। कपास की अन्य संकर किस्में – गोदावरी, सावित्री, वारालक्ष्मी, जयालक्ष्मी।
(H4 hybrid variety of cotton is developed by C. T. Patel at Surat center of Gujarat Agriculture University. Some other hybrid varieties of cotton are - Godavari, Savitri, Varalakshmi, Jayalakshmi.)
4. ज्वार, बाजरा व मक्का में संकर किस्मों का विकास (Development of hybrid varieties in Sorghum, Bajra and Maize):-
i. ज्वार में (In Sorghum):- CSH 1 से CSH 11 (CSH 1 to CSH 11)
ii. बाजरा में (In Bajra):- PHB 10, PHB 14, BJ 104, BK 506
iii. मक्का में (In maize):- मंजरी (Manjri), विक्रम (Vikram), सोना (Sona), विजय (Vijay), किसान (Kisan)
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