Kharif Crops, Chromosome Numbers, Center of Origin, Floral Biology, Breeding Objectives and Breeding Methods
UPDATED ON:- 01-07-2023
1. खरीफ फसलें (Kharif Crops):-
· धान्य फसलें (Cereals):- धान (Rice), मक्का (Maize), ज्वार (Sorghum), बाजरा (Bajra)
· दालें (Pulses):- उड़द (Urd), मूंग (Mung), चंवला (Cowpea), अरहर (Pigeonpea), मोठ (Moth bean)
· तेल बीज फसलें (Oilseed Crops):- सोयाबीन (Soybean), तिल (Sesame), मूँगफली (Groundnut)
· रेशा फसलें (Fibre crops):- कपास (Cotton)
· चारा फसलें (Fodder Crops):- बाजरा (Bajra), ज्वार (Sorghum), मक्का (Maize)
· सब्जियाँ (Vegetables):- मिर्च (Chilli), टमाटर (Tomato)
· नकदी / अन्य फसलें (Cash / other crops):- अरंडी (Castor)
2. गुणसूत्र संख्या (Chromosome Numbers):-
(3 time, 4 time or more time increase in numbers of genome of a plant, is called as polyploidy. It is also called as Eupolyploidy. It is of 2 types:- )
i. स्वबहुगुणिता (Autopolyploidy)
ii. परबहुगुणिता (Allopolyploidy)
i. स्वबहुगुणिता (Autopolyploidy):- जब एक ही जीनोम की 2 से अधिक प्रतियाँ उपस्थित होती हैं तो इसे स्वबहुगुणिता कहते हैं।
(When more than 2 copies of same genome present in plant cells, then it is called as Autoployploidy.)
उदाहरण (Example):-
त्रिगुणित (Triploid) = 3x
चतुर्गुणित (Tetraploid) = 4x
पंचगुणित (Pentaploid) = 5x
षटगुणित (Hexaploid) = 6x
ii. परबहुगुणिता (Allopolyploidy):- जब भिन्न प्रकार के जीनोम एक पादप की कोशिकाओं में उपस्थित होते हैं तो इसे परबहुगुणिता कहते हैं।
(When 2 or 3 different types of genome are present in a plant cells then it is called as Allopolyploidy.)
उदाहरण (Example):-
चतुर्गुणित (Tetraploid)= 2x1 + 2x2
षटगुणित (Hexaploid)= 2x1 + 2x2 + 2X3
3. उत्पत्ति केंद्र (Center of Origin):-
• De Candolle (1886) के अनुसार):-
[According to De Candolle (1886)]
i. कृष्य पौधों की उत्पत्ति जंगली पौधों से हुई है।
(Cultivated plants originate from wild plants.)
ii. कृष्य पौधे उन भौगोलिक क्षेत्रों में उत्पन्न होते हैं जहां इनके जंगली पूर्वज पाये जाते हैं।
(Cultivated plants originate in those geographical area in which their wild relatives are found.)
iii. इनकी एक book प्रकाशित हुई:- "Origin of Cultivated Plants"
(De Candolle published a book:- "Origin of Cultivated Plants")
• N. I. Vavilov (1887 - 1943):-
i. यह एक रूसी आनुवांशिकविद व कृषि वैज्ञानिक था।
(He was a Russian Geneticist and Agronomist.)
ii. इसने 1920 – 30 (10 वर्ष) तक उत्पत्ति केन्द्र पर खोज की।
(He continued research on center of origin up to 10 years from 1920 to 1930.)
iii. इनके अनुसार पौधों की विविधताएँ पहाड़ों, रेगिस्तानों व नदियों द्वारा अलग हुए छोटे से भू भाग में पायी जाती हैं।
(According to Vavilov, plant diversities are found in a geographical are isolated by hills, desert and rivers.)
• परिभाषा(Definition):- वह भौगोलिक क्षेत्र जहां पर किसी पादप जाति की अधिकतम विविधता पायी जाती है, उत्पत्ति केन्द्र कहलाता है।
(A geographical area which has maximum diversity of a plant species, called as center of origin.)
उत्पत्ति केंद्र के प्रकार (Types of centers of origin):-
• प्राथमिक उत्पत्ति केंद्र (Primary Center of Origin):-
वह भौगोलिक क्षेत्र जहां अधिकतम विविधता व जंगली संबंधी दोनों पाये जाते हैं, प्राथमिक उत्पत्ति केंद्र कहलाता है।
(A geographical area which has maximum diversity as well as wild relatives of a plant species, called as primary center of origin.)
• द्वितीयक उत्पत्ति केंद्र (Secondary Center of Origin):-
वह भौगोलिक क्षेत्र जहां अधिकतम विविधता तो उपस्थित होती है परंतु जंगली संबंधी नहीं पाये जाते हैं, द्वितीयक उत्पत्ति केंद्र कहलाता है।
(A geographical area which has maximum diversity of a plant species, but do not have wild relatives, called as secondary center of origin.)
• विविधता केन्द्र भूमध्य रेखा के दोनों ओर 20°N व 45°S के बीच ही सीमित हैं।
(Diversity centers are restricted between 20°N and 45°S on both side of equator.)
8 उत्पत्ति केंद्र (8 Centers of Origin):- Vavilov ने 8 उत्पत्ति केन्द्र बनाए -
(Vavilov make 8 centers of origin - )
i. China:- यह सबसे बड़ा केन्द्र है। यह प्राचीनतम केन्द्र है। यहाँ 136 पौधों की उत्पत्ति हुई है।
(It is largest and oldest center of origin. 136 plants originate in China.)
ii. Indian Center:- इसे 2 उपकेन्द्रों में विभाजित किया गया है-
(This center is further divided into 2 sub-centers-)
• Indo - Burma:- इसमें भारत व बर्मा आते हैं। यहाँ 117 पौधों की उत्पत्ति हुई है।
(It includes India and Burma. 136 plants originate in this sub-center.)
• Indo - Malaya:- इसमें जावा, सुमात्रा, मलाया व फिलीपीन्स आते हैं। यहाँ 55 पौधों की उत्पत्ति हुई है।
(It includes Java, Sumatra, Malaya and Philippines. 55 plants originate in this sub-center.)
iii. Central Asia:- इसमें पंजाब, जम्मू - कश्मीर, अफगानिस्तान, तजाकिस्तान व उज्बेकिस्तान को सम्मिलित किया गया है। यहाँ 43 पौधों की उत्पत्ति हुई है।
(It includes Punjab, Jammu - Kashmir, Afghanistan, Tajikistan and Uzbekistan. 43 plants originate in this center.)
iv. Minor Asia (Near Eastern) (Persian Center):- इसे मेसोपोटामिया का उर्वर अर्धचंद्र भी कहते हैं। इसमें ईरान, ईराक, सीरिया, लेबनोन व इजराइल को सम्मिलित किया गया है। यहाँ 83 पौधों की उत्पत्ति हुई है।
(It is also called as fertile crescent of Mesopotamia. It includes Iran, Iraq, Syria, Lebanon and Israel. 83 plants originate in this center.)
v. Mediterranean Center:- इसमें पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, ऑस्ट्रिया व इटली को शामिल किया गया है। यहाँ 84 पौधों की उत्पत्ति हुई है।
(It includes Portugal, Spain, France, Austria and Italy. 84 plants originate in this center.)
vi. Ethiopian Center (Abyssinian Center):- इसमें अफ्रीका के इथोपिया व पहाड़ी देश एरिट्रिया को शामिल किया गया है। यहाँ 38 पौधों की उत्पत्ति हुई है।
(It includes African country Ethiopia and hilly country Eritrea. 38 plants originate in this center.)
Note:-उपरोक्त 6 केन्द्रों को सम्मिलित रूप से "Old World" कहा जाता है।
(Above 6 centers are collectively known as "Old World".)
vii. Central America (Mesoamerican Center) (Mexican Center):- इसमें South Mexico को सम्मिलित किया गया है। यहाँ 49 पौधों की उत्पत्ति हुई है।
(It includes south Mexico. 49 plants originate in this center.)
viii. South America:- इसमें पेरु, बोलाविया, चिली व ब्राजील को सम्मिलित किया गया है। यहाँ 62 पौधों की उत्पत्ति हुई है।
(It includes Peru, Bolivia, Chile and Brazil . 62 plants originate in this center.)
Note:- अंतिम 2 केन्द्रों को सम्मिलित रूप से "New World" कहा जाता है।
(Last 2 centers are collectively known as "New World".)
4. पुष्पीय बायोलॉजी (Floral Biology):-
पुष्प की संरचना (Structure of Flower):- फ़सली पौधों में लैंगिक जनन के लिए पुष्प होता है। जिसकी संरचना नीचे diagram में दी गयी है। पुष्प में नर जननांग को पुंकेसर व मादा जननांग को अंडप कहते हैं।
(Flower is required for sexual reproduction in crop plants. Its structure is given below in the diagram. In flower male reproductive organ is called stamen and female reproductive organ is called carpel.)
a. द्विलिंगता (Bisexuality):- जब पौधों में द्विलिंगी पुष्प पाये जाते हैं तो इसे द्विलिंगता कहते हैं। द्विलिंगी पुष्प में नर भाग पुंकेसर व मादा भाग अण्डप दोनों एक ही पुष्प में पाये जाते हैं। इस प्रकार परागकोष व वर्तिकाग्र दोनों पास पास स्थित होते हैं। परागकोष के स्फुटित होते ही परागकण पास स्थित वर्तिकाग्र पर आसानी से स्थानांतरित हो जाते हैं और स्वपरागण हो जाता है। इस प्रकार स्वपरागण के लिए पौधों में द्विलिंगी पुष्पों का होना आवश्यक है इसलिए स्वपरागित फसलों में हमेशा द्विलिंगी पुष्प ही पाये जाते हैं।
(When plants have bisexual flowers, then it is called as bisexuality. In bisexual flower both male part stamen and female part carpel are found in the same flower. Thus anthers and stigma are placed closely to each other. As the anther dehisce, the pollens transferred easily on to stigma situated nearby and cause self pollination. Thus bisexuality is required in self pollinated crops. Hence self pollinated crops always have bisexual flowers.)
b. एकलिंगता (Dicliny, Unisexuality):- जब पौधों में एकलिंगी पुष्प पाये जाते हैं तो इसे एकलिंगता कहते हैं। एकलिंगी पुष्पों में केवल नर भाग पुंकेसर या मादा भाग अण्डप एक ही उपस्थित होता है। इस प्रकार परागकोष व वर्तिकाग्र दोनों दूर दूर स्थित होते हैं।
(When plants have uni sexual flowers, then it is called as uni sexuality. Uni sexual flower has either male part stamen or female part carpel. Thus anthers and stigma remain away from each other.)
नर व मादा पुष्पों की स्थिति के आधार पर यह दो प्रकार की होती है:-
(These plants are of two types based upon position of male and female flowers):-
i. द्विलिंगाश्रीयता (Monoecy)
ii. एकलिंगाश्रीयता (Dioecy)
i. द्विलिंगाश्रीयता (Monoecy):- जब नर व मादा पुष्प दोनों एक ही पौधे पर उपस्थित होते हैं तो इसे द्विलिंगाश्रीयता कहते हैं। उदाहरण - आम, अरंडी, केला, मक्का, कुकुरबिट्स, अंगूर, स्ट्रौबरी, रबर, कसावा आदि। आम, अरंडी, केला में नर व मादा पुष्प एक ही पुष्पक्रम में पाये जाते हैं। मक्का में नर व मादा पुष्प अलग अलग पुष्पक्रमों में पाये जाते हैं।
(When male and female flowers both are found on the same plant, then it is called as monoecy. Examples - Mango, Castor, Banana, Maize, Cucurbits, Grapes, Strawberry, rubber, Cassava etc. Male and female flowers are found in the same inflorescence in Mango, Castor and Banana. Male and female flowers are found in different inflorescences in Maize.)
ii. एकलिंगाश्रीयता (Dioecy):- जब नर व मादा पुष्प अलग अलग पौधों पर उपस्थित होते हैं तो इसे एकलिंगाश्रीयता कहते हैं। उदाहरण - पपीता, खजूर, शहतूत, पालक, सन, शतवार आदि।
(When male and female flowers are found on different plants, then it is called as dioecy. Examples - Papaya, Date palm, Mulberry, Spinach, Sunn, Shatavar etc.)
5. प्रजनन उद्देश्य (Breeding Objectives):-
i. अधिक उपज (Higher Yield):- सभी फसलों में यह मुख्य उद्देश्य है जो भविष्य में भी रहेगा।
(This is main objective in all crops at present and also remain in the future.)
ii. गुणवत्ता सुधार (Quality Improvement):- गुणवत्ता उपभोक्ता के लिए महत्वपूर्ण लक्षण है। ये लक्षण अलग अलग फसलों में अलग अलग होता है।
(Quality is an important feature for consumers. It vary from crop to crop.)
iii. रोग व कीट रोधिता (Disease and Insect Resistance):- रोग व कीट फसलों को हानि पहुंचाते हैं। अत: इन्हें रोकना आवश्यक है। इसके लिए रोगरोधी व कीटरोधी किस्मों का उपयोग किया जाता है। नई किस्मों का रोगरोधी व कीट रोधी होना उनके विमोचन के लिए एक आवश्यक शर्त है। रोधी किस्मों को उगाने से उत्पादन अधिक व स्थिर होता है।
(Diseases and insects harm the crops. Hence it should be prevented. Disease resistant and insect resistant varieties are to be develop for this purpose. Disease resistant and insect resistant characters are essential for release of newly developed variety. Use of resistant varieties leads to high and stable productivity.)
iv. शीघ्र परिपक्वता (Early Maturation):- अधिकांश फसलों में यह गुण उपयोगी होता है। इससे फसल चक्र को अपनाना संभव हो सका है। सीजनल कीटों व रोगों से बचाव किया जा सकता है। अरहर एक ऐसी फसल है जो पकने में बहुत अधिक समय लेती है। अत: इसकी उत्कृष्ट व शीघ्र पकने वाली किस्मों का निर्माण करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
(This character is useful in most of the crops. This has made it possible to adopt the crop cycle. Crops can be protected from seasonal insects and diseases. Pigeon pea crop take long time for maturity. So efforts are being made to develop its superior and early maturing varieties.
v. प्रकाश असंवेदिता (Photo insensitivity):- पौधों को पुष्पन के लिए प्रकाश की एक निश्चित अवधि की आवश्यकता होती है। इसे प्रकाश संवेदिता कहते हैं। जब ऐसे पौधों को नए व भिन्न जलवायु वाले क्षेत्र में उगाते हैं तो इनमें पुष्पन की प्रक्रिया प्रभावित होती है जिसका उपज पर सीधा प्रभाव पड़ता है। पादप प्रजनन के उपयोग से हम फसलों की प्रकाश असंवेदी किस्मों का निर्माण करते हैं। प्रकाश असंवेदी किस्मों को नए व भिन्न जलवायु में उगाने पर उपज स्थायी बनी रहती है। पंजाब में धान की खेती व पश्चिम बंगाल में गेहूँ की खेती प्रकाश असंवेदी किस्मों के कारण ही संभव हो सकी है।
(Plants require a certain period of light for flowering. This is called as photo sensitivity. When these plants are grown in a new and different climate area, the process of flowering is affected which decrease the crop yield. In plant breeding photo insensitive varieties are developed to overcome above problem. Yield of photo insensitive variety remain high and stable when grown in a new and different climate area. Paddy cultivation in Punjab and wheat cultivation in West Bengal made possible only due to photo insensitive varieties.)
vi. अविशरण (Non-shattering):- पकने पर किसी फसल के बीजों का अपने आप जमीन पर गिरना विशरण (Shattering) कहलाता है। पौधे के लिए यह एक अच्छी प्रक्रिया है परंतु किसान के लिए यह एक अवांछित प्रक्रिया है। इसलिए फसलों में अविशरण का गुण होना चाहिए।
(self falling of crop seeds on to ground upon maturity is called as shattering. This is good for plant but undesired process for a farmer. So plants should have property of non-shattering.)
vii. समकाल पक्वता (Synchronous Maturity):- सरसों, मूंग जैसी फसलों में फलियाँ एक साथ नहीं पकती हैं, जिससे उपज घटने से आर्थिक नुकसान होता है। अत: ऐसी फसलों में एक साथ पकने वाली किस्मों का विकास आवश्यक है।
(Pods do not mature simultaneously in mustard and mung crop. This leads to economic loss. Hence synchronous maturity in crop varieties is an important objective in plant breeding.)
viii. सूखा व लवण रोधिता (Drought and Salt Resistance):- भारत की अधिकांश खेती (70%) असींचित (Rain fed) है। बहुत सी भूमि में लवणों की अधिकता है। इन क्षेत्रों के लिए सूखा व लवण रोधी किस्मों का विकास आवश्यक है।
(In India most of the farming (70%) is rain fed. There is an abundance of salts in many lands. Hence drought resistant and salt resistant varieties should be developed these areas.)
6. प्रजनन विधियाँ (Breeding Methods):-
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