Status of agriculture in India and different states

Status of agriculture in India and different states (भारत एवं विभिन्न राज्यों में कृषि की स्थिति):- Agriculture remains a foundational sector in India, engaging about 42% of the workforce and contributing 15% to the GDP. However, the sector faces numerous challenges, including environmental and market pressures, fragmented landholdings, and policy complexities.
(भारत में कृषि एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जो लगभग 42% श्रम शक्ति को रोजगार प्रदान करता है और देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 15% का योगदान करता है। फिर भी, यह क्षेत्र पर्यावरणीय और बाजार संबंधी दबावों, बंटवारे की जमीन, और नीतिगत जटिलताओं जैसी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है।)
National Overview (राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य):- India’s agricultural output is diverse, with cereals, fruits, and vegetables forming the bulk of crop production. Recent figures show a higher output of fruits and vegetables than cereals, with West Bengal leading in fruit and vegetable output, while Uttar Pradesh is a top producer of cereals. Livestock, which includes dairy and meat, contributes significantly to the agricultural economy, with Rajasthan and Uttar Pradesh leading in dairy production. Fishing is another strong area, especially in Andhra Pradesh, which accounts for nearly 41% of India’s fishing and aquaculture output​.
(भारत में कृषि उत्पादन विविध है, जिसमें अनाज, फल और सब्जियां मुख्य हैं। हाल के आँकड़ों के अनुसार, फल और सब्जियों का उत्पादन अनाज की तुलना में अधिक है। पश्चिम बंगाल फल और सब्जियों के उत्पादन में अग्रणी है, जबकि उत्तर प्रदेश अनाज उत्पादन में शीर्ष पर है। पशुधन भी कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसमें राजस्थान और उत्तर प्रदेश दुग्ध उत्पादन में आगे हैं। मछली पालन भी एक मजबूत क्षेत्र है, विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, जो देश के मछली उत्पादन का लगभग 41% योगदान देता है।)

Key Challenges (मुख्य चुनौतियाँ):- 
> Indian agriculture grapples with unpredictable weather patterns due to climate change, which disrupts crop yields and economic stability. Erratic monsoon seasons and early heatwaves have affected crops like wheat, leading to export restrictions to safeguard domestic supply. Additionally, groundwater depletion and overuse of water-intensive crops like rice further stress resources, prompting a need for efficient irrigation and water management​.
(भारतीय कृषि जलवायु परिवर्तन के कारण अप्रत्याशित मौसम का सामना कर रही है, जिससे फसल की उपज और आर्थिक स्थिरता प्रभावित होती है। असमान मानसून और प्रारंभिक गर्मी ने गेहूँ जैसी फसलों को प्रभावित किया है, जिससे घरेलू आपूर्ति की सुरक्षा के लिए निर्यात प्रतिबंध लगाना पड़ा। इसके अतिरिक्त, भूजल की कमी और चावल जैसी जल-गहन फसलों का अत्यधिक उपयोग संसाधनों पर और अधिक दबाव डालता है, जिससे कुशल सिंचाई और जल प्रबंधन की आवश्यकता होती है​)
> Market inefficiencies also pose significant challenges. Many small farmers lack access to competitive markets and face low farm-gate prices. Post-harvest losses from poor storage facilities lead to substantial wastage, particularly for perishable goods. Approximately 74 million tonnes of food are wasted annually in India, equivalent to 22% of food grain output​.
(बाजार में भी असमानताएं हैं, और कई छोटे किसान प्रतिस्पर्धात्मक बाजारों तक पहुँच से वंचित रहते हैं और उन्हें कम कीमत मिलती है। खराब भंडारण सुविधाओं के कारण फसल कटाई के बाद भारी नुकसान होता है, खासकर जल्दी खराब होने वाले उत्पादों के लिए। हर साल भारत में लगभग 74 मिलियन टन खाद्यान्न बर्बाद होता है, जो खाद्यान्न उत्पादन का 22% है​।)

Regional Differences (क्षेत्रीय भिन्नताएँ):-
Punjab and Haryana (पंजाब और हरियाणा):- Known as the "Granary of India," these states are major producers of wheat and rice. However, overreliance on these crops has led to soil degradation and water table depletion.
("भारत का अनाज भंडार" के रूप में प्रसिद्ध, ये राज्य गेहूँ और चावल के प्रमुख उत्पादक हैं। हालांकि, इन फसलों पर अत्यधिक निर्भरता से मिट्टी का क्षरण और जल स्तर में कमी आ रही है।)
West Bengal (पश्चिम बंगाल):- A leader in rice and vegetable production, West Bengal has diversified crop production, reducing vulnerability to market fluctuations in a single crop.
(चावल और सब्जियों के उत्पादन में अग्रणी, पश्चिम बंगाल ने फसल उत्पादन में विविधता अपनाई है, जिससे एकल फसल में बाजार में उतार-चढ़ाव से प्रभावित होने की संभावना कम होती है।)
Andhra Pradesh and Tamil Nadu (आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु):- These states have a strong aquaculture and horticulture sector, with Andhra Pradesh dominating India’s fish production.
(इन राज्यों में मछली पालन और बागवानी क्षेत्र मजबूत हैं, जिसमें आंध्र प्रदेश भारत के मछली उत्पादन में अग्रणी है।)
Maharashtra (महाराष्ट्र):- Known for its sugarcane and cotton production, Maharashtra’s agriculture is heavily dependent on rainfall, making it vulnerable to droughts​.
(अपने गन्ना और कपास उत्पादन के लिए जाना जाने वाला महाराष्ट्र मुख्य रूप से वर्षा पर निर्भर है, जिससे यह सूखे के प्रति संवेदनशील है।)

Government Initiatives and Recommendations (सरकारी प्रयास और सिफारिशें):- The government has introduced various programs, such as the National Mission on Sustainable Agriculture and Paramparagat Krishi Vikas Yojana (PKVY), to encourage sustainable and organic farming. Innovations like drone technology for precision agriculture and genetically edited crops for resilience and yield improvement are also being explored. To boost farmer income, the government is focusing on improved market access through schemes like the Agriculture Infrastructure Fund​.
[सरकार ने राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन और परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) जैसी योजनाएँ शुरू की हैं, जो सतत और जैविक कृषि को बढ़ावा देती हैं। ड्रोन तकनीक जैसे नवीन समाधानों का उपयोग भी फसल निगरानी और कुशल उत्पादन के लिए किया जा रहा है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए, सरकार ने कृषि अवसंरचना कोष जैसी योजनाओं के माध्यम से बेहतर बाजार पहुँच पर ध्यान केंद्रित किया है​]

Summary (सारांश):- In summary, while Indian agriculture is facing challenges from climate, resource constraints, and market inefficiencies, targeted regional initiatives and adoption of technology-driven, sustainable practices offer a way forward to ensure stability and growth.
(संक्षेप में, भारतीय कृषि जलवायु, संसाधन संबंधी बाधाओं और बाजार की असमानताओं से जूझ रही है, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर लक्षित पहल और तकनीक आधारित, टिकाऊ प्रथाओं को अपनाकर स्थिरता और विकास सुनिश्चित करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।)

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